लेखक:
श्रीनाथ श्रीपाद हसूरकर
श्रीनाथ श्रीपाद हसूरकर (1924-1988) इंदौर, वाराणसी और आगरा में पढ़ाई के बाद बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पी.एच.डी.। 1951 में म.प्र. महाविद्यालय शिक्षा सेवा में प्राध्यापक के रूप में अध्यापन कार्य आरंभ। आधुनिक संस्कृत लेखन में ‘उपन्यास’ को एक महत्त्वपूर्ण विधा रूप में स्थापित करने वाले लेखक। संस्कृत लेखन को “पुरानी रचनाओं पर टीकाएँ” के सीमित घेरे से निकाला और संस्कृत साहित्य में दुर्लभ विधा उपन्यास को नई दिशा प्रदान की। उन्होंने मुख्यतः ऐतिहासिक उपन्यास लिखे जिनमें प्रमुख हैं-अजातशत्रु, प्रतिज्ञ पूर्ति, रानी चेन्नमा, सिंधुकन्या, दावावल। इन ऐतिहासिक उपन्यासों में उन्होंने संस्कृत भाषा की परंपरागत शैली की बजाय नई संवेदनशीलता, ओजमयी एवं विषयानुकूल भाषा एवं शैली का प्रयोग किया, जिसे काफ़ी पसंद किया गया। इन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार सहित उ.प्र. संस्कृत साहित्य अकादमी का ‘वाणभट्ट पुरस्कार’, म.प्र. संस्कृत अकादमी का ‘सारस्वत सम्मान’ प्राप्त हैं। |
|
सिंधु-कन्याश्रीनाथ श्रीपाद हसूरकर
मूल्य: $ 8.95 |